उत्तराखंड

राज्य के पंजीकृत मदरसों में पढ़ाई कर रहे 1500 छात्रों के भविष्य पर उठे सवाल

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- मदरसों की कामिल- फाजिल डिग्रियां असंवैधानिक

सुप्रीम फैसले के बाद उत्तराखंड मदरसा बोर्ड परीक्षार्थियों की फीस वापस करेगा

देहरादून। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुस्लिम छात्रों के लिए मदरसों से दी जाने वाली कामिल और फाजिल की डिग्रियों को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद उत्तराखंड मदरसा बोर्ड ने इन परीक्षार्थियों की फीस वापस करने का निर्णय लिया है। मुस्लिम संगठनों में इस फैसले पर मतभेद दिखाई दे रहे हैं, लेकिन राज्य में पंजीकृत 415 मदरसों में पढ़ाई कर रहे 1500 छात्रों के भविष्य पर अब सवाल उठ गया है।

उत्तराखंड सरकार मदरसों के खिलाफ सख्त कदम उठा रही है। हाल ही में सरकार ने 190 अवैध मदरसों को चिन्हित करके उन्हें बंद करने के आदेश दिए हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने मदरसों में कामिल-फाजिल कोर्स बंद कर दिए हैं। अदालत का कहना है कि UG और PG की डिग्रियां केवल विश्वविद्यालय से ही दी जा सकती हैं।

उत्तराखंड मदरसा बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए आलिम और फाजिल की डिग्री कोर्स तुरंत प्रभाव से बंद कर दिए हैं। मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने “अविकल उत्तराखंड” को बताया कि “कामिल-फाजिल कोर्स के परीक्षा फार्म अब भविष्य में नहीं भरवाए जाएंगे। जिन लोगों ने अब तक फॉर्म भर दिया है, उनकी फीस वापस की जाएगी।”

कासमी ने कहा, “मदरसा बोर्ड से मिलने वाली कामिल डिग्री को ग्रेजुएट (UG) और फाजिल डिग्री को पोस्ट ग्रेजुएट (PG) डिग्री के बराबर माना जाता है। इसके अलावा, तहतानिया (प्राथमिक), फौकानिया (जूनियर हाई स्कूल), आलिया (हायर सेकेंड्री) के बराबर मान्यता दी जाती है। आलिया स्तर के मदरसों में कामिल और फाजिल की डिग्री दी जाती है।”

बोर्ड अध्यक्ष कासमी ने यह भी बताया कि “निकाय चुनाव के तुरंत बाद आचार संहिता हटते ही बोर्ड द्वारा शिक्षाविदों की एक बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें कामिल और फाजिल डिग्रियों की अनुपलब्धता से प्रभावित छात्रों के शैक्षिक भविष्य को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय से संबद्धता की प्रक्रिया को अमल में लाया जाएगा।”

वहीं, जमीयत उलेमाए हिंद के जिलाध्यक्ष मौलाना अब्दुल मन्नान कासमी ने आलिम और फाजिल डिग्रियों को वैध कराने के लिए नया सुझाव दिया है। उन्होंने कहा, “इन दोनों कोर्सों को बंद करने से बेहतर है कि इन्हें बिहार की तर्ज पर किसी विश्वविद्यालय से एफिलिएट कराया जाए।”

मदरसा एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के सचिव मोहम्मद शाह नजर ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बताया कि “लंबे समय से मदरसा समिति की बैठक न होने के कारण संबद्धता के कई मामले और अन्य मुद्दे लंबित हैं, जिनका तत्काल समाधान होना मुस्लिम छात्रों के हित में है।”

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Author: Shubham Negi
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