कोरोनावायरस महामारी के बाद जहां उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने सभी विभागों को फिजूलखर्ची रोकने के निर्देश दिए हैं और मुख्य सचिव के द्वारा इसको लेकर आदेश भी जारी किए गए हैं। वही उत्तराखंड का शिक्षा विभाग एक ऐसा विभाग है जो पिछले 7 सालों से फिजूलखर्ची का ऐसा नमूना पेश कर रहा है,जिस पर यकीन करना भी मुश्किल है,और यह केवल अधिकारियों की मनमानी के चलते हो रहा है उत्तराखंड शिक्षा विभाग के अधिकारी अपनी अफसरशाही की धौंस जमाने के लिए उत्तराखंड के जनता के खजाने पर पिछले 7 सालों से डाका डालने का काम कर रहे है। लेकिन उत्तराखंड सरकार इस पर आंखें मूंदे बैठी है, और उत्तराखंड का शिक्षा विभाग इस पर मिट्टी डाले हुए हैं।
दरअसल 2013 में केंद्र सरकार के द्वारा एनसीईआरटी की तर्ज पर उत्तराखंड में भी एससीईआरटी के ढांचे को लागू करने के निर्देश दिए गए थे,उत्ततरखंड ढांचा तो बना लेकिन नियमावली के लागू न होने की वजह से ढांचा स्वरूप में नहीं आ पाया। जिसका असर सीधा असर उत्तराखंड के जनता के खजाने पर पड़ रहा है। शिक्षा विभगा अगर एससीईआरटी का ढांचा और जिलों में डायट का ढांचा स्वीकृत होने के बाद नियमावली लागू कर दे तो प्रदेश सरकार के खजाने पर 8 से 10 करोड़ रूपये का वार्षिक बोझ कम हो जाएंगा,क्योंकि केंद्र सरकार के अनुरूप एससीईआरटी और डायट का ढांचा अस्तित्व में आने के बाद उत्तराखंड में एससीईआरटी और डायट के कार्मिको का वेतन केंद्र सरकार के द्धारा जारी किया जाएगा। लेकिन ऐसा होने से एससीईआरटी और डायट में शिक्षा विभाग के अधिकारियों की फौज कम हो जाएंगी,क्योंकि जिन पदों को शिक्षा विभगा के अधिकारी जमे हुए है वह खत्म हो जाएंगे और उन पदों को नई विज्ञप्ती से भरा जाएगा।
ऐसा नहीं है कि मामला शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री के संज्ञान में नहीं है,शिक्षा मंत्री शिक्षा सचिव को मामले का संज्ञान लेने की बात कर रहे है तो मुख्यमंत्री नियमावली बनाने की बात कर रहे है। इस पूरे मामले की खास बात ये है कि जब 2013 से 2016 तक शिक्षा विभगा ने नियमावली नहीं बनाई तो वित सचिव अमित नेगी ने शिक्षा विभाग को नियमावली बनाने के साथ सरकार के खजाने पर पड़ रहे आंकन की याद विभाग का दिलाई,अमित नेगी ने अपने आदेश में शिक्षा विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि विभागीय कर्मिक और अधिकारी नियमावली बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे है,जिसकी वजह से केंद्र सरकार से मिलने वाले 8 से 10 करोड़ रूपये का भार प्रदेश सरकार पर पड़ रहा है। वहीं अमित नेगी का कहना है कि इस सम्बंध में वह फिर से शिक्षा सचिव से बात करेंगे।
वहीं शिक्षा सचिव आर मिनाक्षी सुंदरम का कहना है दो हफ्ते के अंदर इस मामले को लेकर विभाग से शासन को नियमावली प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए है,केंद्र की नियमावली का अध्यन किया जाएगा और जरूरत पड़ी तो कुछ संसोधन भी किए जाएंगे। कुल मिलकार देखे तो यदि शिक्षा विभाग ने केंद्र की नियमावली को अपनाया है तो उत्ततखंड के 8 से 10 करोड़ रूपये वार्षिक बचत तो होगी ही साथ ही गुणवत्ता परख शिक्षा के लिए जो नियमावली बनाई गई उससे उत्तराखंड घटते शिक्षा के ग्राफ को भी सुधार जा सकता है क्योंकि फिर एनसीईआरटी और डायट में योग्य अधिकारियों की इंट्री हो जाएगी।
