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जातीय जनगणना पर कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यशाला, राहुल गांधी ने दी वैचारिक दिशा

“राहुल बोले – यह केवल आंकड़ों की कवायद नहीं, सामाजिक न्याय का राष्ट्रीय संकल्प है”

नई दिल्ली। अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कम्युनिकेशन विभाग की ओर से शनिवार को इंदिरा भवन, नई दिल्ली में जातीय जनगणना विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में देशभर से कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और विभिन्न राज्यों के मीडिया प्रमुखों ने भाग लिया। उत्तराखंड से कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने इस कार्यशाला में भागीदारी की और प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कार्यक्रम की जानकारी साझा की।

कार्यशाला का उद्घाटन नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने किया। आयोजन की रूपरेखा कांग्रेस के संचार विभाग के महासचिव जयराम रमेश और मीडिया व प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा द्वारा तैयार की गई थी। राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा, “यह कार्यशाला केवल एक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस की वैचारिक प्रतिबद्धता और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष की निरंतरता है।”

राहुल गांधी ने कहा कि जातिगत जनगणना का मुद्दा कोई नया नहीं है और कांग्रेस ने हमेशा इसे प्राथमिकता दी है – चाहे वह संसद हो, सड़कों पर आंदोलन हो या फिर घोषणापत्र में इसकी बात। उन्होंने याद दिलाया कि अप्रैल 2023 में कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जातीय जनगणना की तत्काल शुरुआत की मांग की थी।

कार्यशाला में तेलंगाना कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने वहाँ पूरी की गई जातीय जनगणना का विवरण साझा किया। साथ ही कांग्रेस के एससी/एसटी प्रकोष्ठ और ओबीसी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्षों तथा झारखंड सरकार की आदिवासी महिला मंत्री ने भी विचार रखे।

संवैधानिक अधिकारों की बात

जयराम रमेश ने संविधान के अनुच्छेद 15(5) को लागू करने की बात दोहराई ताकि ओबीसी, दलित और आदिवासी छात्रों को निजी शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण मिल सके। उन्होंने कहा कि जब शिक्षा का बड़ा हिस्सा निजी हाथों में है, तो वंचित वर्गों को इससे बाहर रखना एक प्रकार का शोषण है।

वहीं, पवन खेड़ा ने कहा कि आरक्षण की 50% सीमा पर अब पुनर्विचार होना चाहिए, क्योंकि सामाजिक परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं और नए आंकड़े नई वास्तविकता प्रस्तुत कर रहे हैं।

खड़गे और राहुल गांधी का संदेश

कार्यशाला में वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तेलंगाना मॉडल को अपनाने की बात कही और केंद्र सरकार से भी पारदर्शी और सहभागी प्रक्रिया की मांग की।

राहुल गांधी ने सभी प्रवक्ताओं से आह्वान किया कि वे इस मुद्दे को केवल चुनावी मुद्दा न मानें, बल्कि इसे वैचारिक और नैतिक संघर्ष के रूप में देखें। उन्होंने कहा, “यह न केवल सामाजिक न्याय, बल्कि संविधान की आत्मा की रक्षा की लड़ाई है।”

दसौनी ने क्या कहा

गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि यह कार्यशाला न केवल ज्ञानवर्धक रही बल्कि भावनात्मक रूप से भी प्रेरणादायक थी। उन्होंने कहा कि इस तरह के संवाद और विचार-विमर्श से प्रवक्ताओं को राष्ट्रीय मुद्दों की गहराई से समझ मिलती है और आगे ऐसी कार्यशालाएं नियमित होनी चाहिए।

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Author: Shubham Negi
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