उत्तराखंड में इस साल पंचायत चुनाव नहीं होंगे। यही नहीं पंचायतों का कार्यकाल भी नहीं बढ़ाया जाएगा। प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 20 अक्टूबर तक एक रिपोर्ट मांगी थी। जिसे पंचायत निदेशालय द्वारा शासन को सौंप दिया गया है। ये रिपोर्ट हरिद्वार को छोड़कर सभी जिलों में ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतों के परिसीमन की जानकारी पर आधारित है। परिसीमन के बाद, प्रदेश की ग्राम पंचायतों की संख्या 7,796 से बढ़कर 7,823 हो गई है। जबकि ग्राम पंचायत वार्डों की संख्या 59,219 से बढ़कर 59,357 हो गई। जिला पंचायतों की सीटें भी 385 से बढ़कर 389 हो गई हैं। हालांकि, क्षेत्र पंचायतों की संख्या 3,162 से घटकर 3,157 रह गई है। इसका कारण शहरी विकास विभाग द्वारा कुछ ग्राम पंचायतों को नगर पालिका क्षेत्रों से बाहर किया जाना और कुछ निकायों का विस्तार होना है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पंचायती राज विभाग के संयुक्त निदेशक मनोज तिवारी के मुताबिक, परिसीमन के बाद शहरी निकायों में कुछ गांव शामिल हो गए हैं। कुछ निकायों से बाहर हुए हैं। मतदाता सूची का भी अगले साल जनवरी तक पुनरीक्षण किया जाना है। पुनरीक्षण के बाद मतदाता सूची तैयार होगी। ऐसे में अगले साल फरवरी-मार्च के बाद ही चुनाव हो पाएंगे। पंचायतों का कार्यकाल बढ़ाने को लेकर भी एक्ट में कोई व्यवस्था नहीं है। इस देरी के कारण, नवंबर में समाप्त हो रहे पंचायतों के कार्यकाल को नहीं बढ़ाया जाएगा, क्योंकि पंचायतीराज अधिनियम में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है। हालांकि, सरकार के पास यह विकल्प है कि वह पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशासक नियुक्त कर सकती है। प्रशासक की भूमिका अधिकतम छह महीने तक सीमित हो सकती है। इस व्यवस्था के तहत, जिला पंचायतों में जिलाधिकारी और जिला पंचायत अध्यक्ष प्रशासक बनाए जा सकते हैं, जबकि ब्लॉक में एसडीएम और क्षेत्र प्रमुख, और ग्राम पंचायतों में एडीओ पंचायत और ग्राम प्रधान को प्रशासक बनाया जा सकता है।