उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ हाई कोर्ट के सीबीआई जांच के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया है। इतना ही नही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए तीखी टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को चौंकाने वाला बताया।गौरतलब हो उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को तथाकथित पत्रकार कहलाने वाले उमेश शर्मा के खिलाफ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि बिगाडने के मामले में दर्ज की गई प्राथमिकी रद्द करते हुए सीएम रावत के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश की गई थी। न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की एकल पीठ द्वारा पारित आदेश को सर्वोच्च न्यायालय ने न सिर्फ तथकाल प्रभाव से रोक दिया है, बल्कि फैसले पर हैरानी और चौंकाने वाला फैसला करार देते हुए, इस मामले में संलिप्त सभी पक्षों को 4 हफ्ते में जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बताया चौंकाने वाला
क्या कही सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बात
न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की एकल पीठ द्वारा पारित आदेश पर कहा “ऐसा आदेश कैसे पारित हो सकता है? मुख्यमंत्री मामले में पक्ष ही नहीं थे। उनके खिलाफ जांच की कोई मांग भी नहीं थी। यह हैरान करने वाला आदेश है। सीबीआई जांच के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाती है। सभी पक्षों को नोटिस। 4 हफ्ते में जवाब दें”।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने क्या कहा
सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा की, उच्च न्यायालय का आदेश कानून का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की पीठ जस्टिस अशोक भूषण, आर सुमाष रेड्डी और एमआर शाह ने कहा कि, “सीएम उक्ता मामले में पक्षकार नही हैं और उच्च न्यायालय ने जांच का आदेश दिया यह चौकाने और हैरान करने वाला है”
जालसाजों के मुंह में करारा तमाचा!
दरसअल, 18 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही त्रिवेन्द्र ने भ्रष्टाचार को लेकर ‘ज़ीरो टॉलरेन्स’ का कड़ा संदेश दिया था। एनएच घोटाला, उर्जा निगम में हुईं अनियमितता, जल निगम के एमडी पर कार्रवाई, पीडब्लूडी और सिंचाई विभाग के दर्जनों इंजीनियरों का निलंबन, न जाने ऐसे कितने उदाहरण हैं जिनसे त्रिवेन्द्र ने अपनी ईमानदार मुख्यमंत्री की छवि बनाई। सचिवालय में दलालों की एंट्री बंद करने के उनके फैसले की स्वीकारोक्ति तो दबी जुबान से विपक्षी खेमा भी करता है।
बाकी शिक्षा, स्वास्थ और बुनियादी सुविधाओं का त्रिवेन्द्र राज में गांव-गांव हुआ विस्तार तो सबके सामने है ही। पारदर्शी शासन, चहुँमुखी विकास और सामाजिक उत्थान के इस दौर में स्वार्थी तत्व हैरान भी हैं और परेशान भी। वो त्रिवेंद्र के खिलाफ 5 साल पुराने एक ऐसे मुद्दे को हर बार हवा में उछालते हैं, जिसका उत्तराखंड से कोई सरोकार नहीं है।
झारखंड के एक आधारहीन मसले को उछालकर उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिशें तीन साल से चल रही हैं। जब भ्रष्टाचार को कुचला जाता है, दलालों की दुकानें बंद हो जाती हैं, राजनेता हाथ धोकर कुर्सी के पीछे पड़ जाते हैं तो जनता का हित और राज्य की छवि तक दांव पर लग जाती है। कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से इस वक़्त उत्तराखंड गुजर रहा है।