उत्तराखंड

चमोली के दुर्गम क्षेत्र वाण गांव की बेटी भागीरथी को सलाम

जिस ट्रैक में आपको लग 10 दिन, वो इस बेटी में 36 घंटे में पूरा कियामहज 19 वर्ष की उम्र में चमोली की भागीरथी ने 8-10 दिन में पूरा होने वाला ट्रेक महज 36 घंटे में पूरा कर अपनी काबिलियत की ठोस मिसाल पेश की थी। अब उत्तराखंड की बेटी ओलंपिक्स में उतरने के लिए ” स्लो वॉक ” का प्रशिक्षण ले रही है।
यह सत्य है की उम्र का प्रतिभा से कोई संबंध नहीं है। अगर आपके अंदर काबिलियत है तो उम्र उसके बीच में कभी भी अड़चन नहीं बन सकती है। इसका जीता-जाता उदाहरण है चमोली जिले के देवाल ब्लॉक के छोटे से घेस गांव की रहने वाली देवभूमि की काबिल बेटी भागीरथी…। 3 वर्ष में भागीरथी के सिर के ऊपर से पिता का साया उठ गया था। एक छोटे से गांव की रहने वाली महज 19 वर्ष की बच्ची जिसने बचपन से ही संघर्ष की आग में खुद को तपा कर एक मजबूत लड़की के रूप में स्वयं को खड़ा किया है, जिसके सपने आसमान से भी ऊंचे हैं, देवभूमि की वह काबिल बच्ची अब ओलंपिक में भाग लेने की तैयारी कर रही है। भागीरथी का सपना ओलंपिक जीतने का है। महज 19 साल की भागीरथी पैदल चाल यानी कि वॉक रेस में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम करना चाहती है। देवभूमि की बेटी भागीरथी ने अपनी काबिलियत का उदाहरण तब ही दे दिया था जब उत्तराखंड के सबसे कठिन ट्रेक में शुमार रोंटी पर्वत को महज 36 घंटे में बिना किसी संसाधन और बिना रुके पूरा कर लिया था।
इस दुर्गम ट्रेक को पूरा करने में तकरीबन 8 से 10 दिन का समय लग जाता है। मगर भागीरथी ने महज 36 घंटे में ही इस ट्रैक को खत्म कर दिया। भागीरथी की प्रतिभा को पहचाना हिमाचल प्रदेश के निवासी और एक अंतरराष्ट्रीय एथलीट सुनील शर्मा ने। सुनील शर्मा अब भागीरथी को ओलंपिक के लिए ट्रेन कर रहे हैं। वह गवर्नमेंट कॉलेज संगहाड़ में पैदल चाल में उसको तराश रहे हैं और ओलंपिक में भेजने की तैयारी कर रहे हैं। भागीरथी महज 3 वर्ष की थी जब उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। बचपन से ही भागीरथी की किस्मत में संघर्ष और अभाव लिखा था। भागीरथी ने होश संभाला और संघर्ष में जीवन जिया। वह पढ़ाई भी करती थी और उसी के साथ में घर का सारा काम भी। यहां तक कि भागीरथी अपने खेतों में भी खुद ही हल लगाया करती थी। शायद यही वजह थी कि भागीरथी में मेहनत करने से कभी इंकार नहीं किया। स्पोर्ट्स का शौक पाले भागीरथी स्कूल में भी कबड्डी, वॉलीबॉल समेत कई खेलों में अव्वल आती थी। जिसके बाद उसकी इस प्रतिभा को उसके शिक्षकों ने पहचाना और धीरे-धीरे भागीरथी ने जिला स्तर पर अपनी पहचान बनानी शुरू की।

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Author: Shubham Negi
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